माना जुल्फें तेरी थी ऐसी ,
जैसे हो कोई काली घटा का आंगन।
बाकि तो देखने वाले का नजरिया चाहिए ,
फिर तेरा मन कहाँ और मेरा दिल कहाँ ।
पा सके तुझे कोई अपने ख्वाबो में भी,
ऐसा किसी का नसीब कहाँ ।
एक बार यूँ इथला कर मुस्कुरा ही देते ,
फिर तेरा मन कहाँ और मेरा दिल कहाँ ।
साजिशें तो बहुत रचीं होंगी तुमने
अपनी इन नीली हसीं निगाहों से।
बस अगर उन निगाहों का कुसूर ना होता,
तो ये शायर कहाँ और ये शेर कहाँ।
अपने अल्फ़ाज़ों के बाणो से,
घायल तो बहुतों को किया होगा तुमने।
पर उन घायलों में एक
सच्ची मुहबत को खोजना
सच्ची मुहबत को खोजना
ऐसा मेरा नसीब कहाँ और तेरा वक्त कहाँ।
पलट दें पने जैसे जिंदगी के ,
तरह तरह के लोगों से तो तुम मिली होगी।
बस एक तेरे देखने का नजरिया ही तो चाहिए था ,
फिर मेरा दिल जहाँ, तेरा मन वहां।
माना तू होगी ख्वाबों की कली,
माना तू होगी एक प्यारी सी नादान परी।
पर दिल तो मेरा भी एक परिंदा था,
घूम घूम कर ना जाने जिसने,
ढूंढा किस किस गली।
ढूंढा किस किस गली।
मौशकी में आ कर खुद को
बदनाम कर लिया हमने।
खुद को ना जाने क्या क्या कहा हमने
बस एक तेरा साथ ही तो चाहिए था ,
फिर तेरा मन जहाँ और मेरा दिल वहां ।
रचनाकार : अनमोल मंगल
परियोजना अभियानता
विपरो।
परियोजना अभियानता
विपरो।
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