आजादी की 72वीं वर्षगांठ निसंदेह एक अलग उत्साह व् उमंग के साथ पुरे भारत भर में त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। 15 अगस्त आजादी का वह पर्व है जिसे पाने के लिए सैंक्डो कुर्बनिआँ दी गयी। उन सब शहादतों की ही बदौलत आज हम सब स्वतंत्र हैं और इन्ही शहादतों की याद में यह दिन बहुत ही हर्ष व् उलाश से मनाया जाता है। हम सब इस दिन का हर वर्ष बड़ी उत्शुकता से इंतज़ार करते हैं। आज सड़को पर , गलियों में , अलग अलग भवनों में सिर्फ तिरंगा झंडा नज़र आता है। सड़को पर हर गाड़ी के ऊपर झंडे का लहराना लोगों की ख़ुशी का प्रतिक है व् देश के प्रति प्रेम जाहिर करता है। वहीँ दूसरी ओर कुछ समुदाय व् कुछ क्षेत्रों में आजादी के 72 वर्ष बाद भी स्वतंत्र होने का अभाव नजर आता है।
दो देशों के बिच लकीर खीच जाने के बाद (ये तेरा वो मेरा) की लड़ाई में पीसने वालो की संख्या कुछ कम नहीं है। हाल ही में हमने कश्मीर को इस बोझ तले दबे देखा। ऐसा स्थान जहाँ एक राज्या का विभाजन दो टुकड़ो में हो चूका हो, जहाँ ईद का चाँद भी ईद ना मना पाया हो, हो सकता है इससे लदाख के कुछ लोगों में ख़ुशी की लहर हो लेकिन यह बात भी कुछ ज्यादा ख़ुशी नहीं दे पाती जब जम्मू और कश्मीर का मसला सामने आता है। कर्फ्यू ख़तम होंने का नाम नहीं ले पाता । आजादी के दिन भी लोगों को बाहर निकल कर आजादी मनाने की इजाज़त नहीं थी। ईद का त्यौहार भी बेरंग सा ही निकला।
पथरबाजी का रूप क्या समझाने की कोशिश करता है ? क्या यह बताना चाहता है की हमे भी आजादी चाहिए , मगर किससे ? क्या वहां के स्थाई निवासिओं को ईद का त्यौहार मनाने के लिए या आजादी मनाने के लिए किसी की इजाज़त , सलाह या मशवरे की जरूरत है। स्वाल बेशक अनगिनत हैं किन्तु जवाब कोई नहीं। तनाव कहीं भी उमड़ सकता है लेकिन हर तनाव को मिटाने का एक सही रास्ता रहता है। परन्तु यह तनाव कुछ दिन बाद भी हो सकता था , त्यौहार जहां खुशियां लाते हैं वहीँ एक शहर ऐसा भी है जो गम में डूबा हुआ है।
अलग अलग स्थान पे इस आजादी का अलग महत्त्व रहा है। जहाँ नागालैंड में स्थाई निवासिओं ने वहां का झंडा फहरा कर इस पर्व को सम्मानित किया वहीँ दूसरी ओर लदाख के लोगों ने इसे लदाख का पहला स्वतंत्रता दिवस कहा। हो सकता है हर जगह के अलग तनाब हों लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए की इस आजादी पर हर उस व्यक्ति का हक़ है जो इस सूंदर पावन धरती का सपूत है। पंजाब , गुजरात , हिमाचल हो या मराठा हर राज्य का , हर समुदाय का इस देश पर बराबर हक़ है।
कश्मीर के लोगों में हालाँकि आक्रोश तो बहुत है परन्तु निसंदेह सरकार को इस तनावपूर्ण स्थिति में कुछ ऐसा कदम उठाना चाहिए जो देश व् वहां के स्थाई लोगों दोनो के हितों की बात करता हो। द्विपक्षीय वार्ता से ही इस बात का हल निकल सकता है अन्यथा एक भाग जो भारत का हिस्सा है अपने ही देश से रूठ कर रह जायेगा और हज़ारो मतभेदों के पक्ष बुनता रहेगा। हमें नहीं भूलना चाहिए की उन्हें भी जीने का उतना ही अधिकार है जितना दूसरे राज्य के लोगों का। उम्मीद करते हैं की जल्द ही वहां हालात अच्छे हों व् सब मिल जुल कर रहें।
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