Sunday, May 6, 2018

पैगाम-ए-मुहबत




आज इस प्यार का वो मुकाम आया है। 
उड़ते हुए परिंदे से किसी का पैगाम आया है  


परिंदा : (पैगाम पढ़ते हुए)

बदलते हैं अफ़साने, लम्हे और ख्वाब 
 प्यार ने तुम्हारे न छोड़ा है कभी  मेरा साथ 
हो सके  तो इक्ताला  कर देना आज अपने उस दिल को,
कबूल है हमें आज से तुम्हारा ये साथ। 


हो सके तो माफ़ कर देना मेरी उन नादानियों  को 
हो सके तो माफ़ कर देना मेरी उन नासमझियों को 
ऐतवार ना कर सकी में उस सच्ची मोहोबत का 
जिसने अपनी निगाहें  बिछाई थी मेरा साथ निभाने को,


कोशिस तो बहुत की थी मेने तुमसे अपना साथ छुड़ाने की 
कोशिस की थी मेने तुम्हे अपने   दिल से  निकालने की 
 पर शायद ये एक वक़्त ही था तेरा 
जो आज जान छिड़कती  हूँ में, 
हर कदम पर तेरा साथ पाने को। 

शायर :

उनके इस दीदार को देख कर 
आँशु तो मेरी आँख में भी झलक आया है 
इस बेदर्द मौसम में मेरा दिल थर थर्राया है 
इस कश्मकश को देख कर वो परिंदा सक  पकाया है। 
कहाटे मार मार कर बस उसने एक ही लफ्ज दोहराया है 


परिंदा : (शायर से )

देख ले आशिक़ आज तेरा भी दौर आया है 
उस बेदर्द आशिक़ी ने तुझे खूब रुलाया है 
तड़प रही है वो तेरे साथ एक कदम चलने को 
आज उस तपस्या को तू यूँ व्यर्थ न कर 
क्यूंकि आज तेरा भी दौर आया है 


कह दूंगा में उससे की 
देख री पगली, तेरे उस यार का संदेशा आया है 
तेरे इस प्यार को उसने फिर अपना बनाया है 
हो सके तो इस बार उससे तू दगा न करना 
क्यूंकि अभी अभी मेने उसे मरने से बचाया है 


शायर :

(उस परिंदे की मासूमियत को सुन कर
मेरे इस दिल ने आज फिर से ये मूड बनाया है 
 बोल दिया मेने भी उस परिंदे को) 
कह देना दास्ताँ -ए -मुहबत मेरी उस आशिक़ी से 
की बस एक आखिरी  दिन ओर मरने दे 
क्यूंकि कल से फिर मेरे जीने का दिन आया है 






रचनाकार : अनमोल मंगल 
परियोजना अभियंता 
विपरो 






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